प्रिय श्रद्धालुगण, सतपुड़ा की सुरम्य वादियों के बीच पवित्र औदुम्बर वृक्ष की जड़ से उद्गमित होकर ओमकार के आकर में सर्पाकार प्रवाहित होकर गुजरने वाली पावन सलिला सर्पिणी नदी के तट पर "अर्धनारीश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर" स्थापित है. जो की मध्यभारत के अति प्राचीन शिवालयों मे से एक तथा साडेबारह ज्योतिर्लिंगों में अर्धज्योतिर्लिंग की मान्यता से विभूषित यह अर्धनारीश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर विश्वविख्यात शिवशक्ति धाम के रूप मे प्रमुख आस्था केन्द्र है, प्राचीन काल में यह क्षेत्र दण्डकारण्य कहलाता था तथा दैत्यगुरु शुक्राचार्य की तपोभूमि होने के साथ साथ कई तपस्वी साधु संतो की जिवंत समाधियाँ इस क्षेत्र में स्थित है, श्री आन्याजी महाराज (दिगम्बर स्वामी महाराज) , श्री तारकनाथ स्वामी महाराज, श्री मुकुंद स्वामी महाराज आदि महात्माओं की जिवंत समाधिया प्रमुख है, वंदनीय राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज, संत श्री गाडगे महाराज, शंकराचार्य श्री स्वरूपानंदजी महाराज, संत श्री भाकरे महाराज इनका वास्तव्य लाभ इस मंदिर को प्राप्त हुवा है।
इस परम पवन मंदिर की वास्तुकला महामृत्युंजय मंत्र पर आधारित है. प्रथम परकोट में चार दिशाओ में चार प्रवेश द्वार है जो की चार धाम का प्रतिक है, एवं द्वितीय परकोट में बारह प्रवेश द्वार है जो बारह ज्योतिर्लिंगों के प्रतिक है, ज्योतिर्लिंग की अद्भुत विशेषता यह है की यह गहरे काले एवं गौर वर्ण दो प्रकार के पत्थरों से निर्मित है, जिससे यह स्वयं महादेव "शिव",पार्वती "शक्ति" के संग एक साथ विराजमान होने का प्रतिक है,जो की अर्धनारीश्वर भगवान का अभीष्ठ रूप है विश्व में एकमात्र यही शिव मंदिर है जहां सूर्योदय की प्रथम किरण कार्तिक माह में सीधे ज्योतिर्लिंग पर पड़ती है, इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन एवं प्रदक्षिणा से चारो धाम की यात्रा एवं बारह ज्योतिर्लिंगों के दर्शन का पुण्य लाभ प्राप्त होता है, सर्पिणी नदी तट पर स्थित होने के कारण इस अर्धनारीश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर क्षेत्र में कालसर्प दोष का निवारण विधि विधान से होता है, देश के कोने कोने से श्रद्धालुगण यहा आकर अनन्य भाव से दर्शन कर अपनी मनोकामनाओ का शीघ्रफल प्राप्त कर अभिभूत होते है।